श्री देवी मेला एवं ग्राम सुधार प्रदर्शनी का संक्षिप्त इतिहास

माँ शीतला जिनका आशीर्वाद पाने हेतु होली पर्व के बाद चैत्र मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी (शीतला अष्टमी) से प्रारम्भ होकर लगभग एक माह तक प्रतिवर्ष मेला एवं प्रदर्शनी का आयोजन होता है। सभी धर्मों के लोग इसमें प्रतिभाग करते हैं। शीतला माँ का मन्दिर 24 फुट वर्गाकृति में 9-9 फुट ऊँचा है। एक दशक पूर्व माँ की प्रतिमा खण्डित होने पर नवीन प्रतिमा स्थापित की गई है। नगर के निकट मैनपुरी-दिल्ली मार्ग पर नगर से तीन किलो मीटर दूर ईशन नदी के तट पर राजा जगतमणी चौहान जूदेव द्वारा सन् 1500 के लगभग पुत्र प्राप्ति हेतु शीतला माँ की प्रतिमा स्थापित की गई है। पूर्व में होली के उपरान्त प्रतिवर्ष चैत्र मास मेला लगता था। सन् 1925 से प्रदर्शनी का रूप लेकर श्री देवी मेला एवं ग्राम सुधार प्रदर्शनी प्रदेश में स्थान लिये है जहाँ प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में नेजा चढ़ाते हैं और प्रदर्शनी में आयोजित कार्यक्रमों का आनन्द उठाते हैं। समाप्ति से लेकर शुरूआत होने तक वर्ष भर यहाँ की जनता आश लगाये रहती है मैनपुरी जनपद के लिए मात्र यही एक मनोरंजन का उत्सव है। आस्था स्वरूप श्रद्धालु मीलों दण्डवत लेट कर नाच गाने के साथ दर्शन करने एवं मुराद पूरी होने पर नेजा, हलुआ-पूड़ी, अठौरी चढ़ाने आते हैं, मुंडन कराते हैं, लंगुरिया गीत गाते हैं, अपने तन पर ज्वार उगाते हैं। पूर्व में चाँदी के सिक्के चढ़ाये जाते थे। मान्यता है कि बसन्त ऋतु के दौरान चेचक रोग से ग्रस्त पीड़ित शीतला माँ के दर्शन के उपरान्त रोग मुक्त हो जाते हैं। नेजे में लोग झण्डा, चुनरी आदि माँ को भेंट करते हैं। पूर्व में लोग बैल गाड़ियों एवं रब्बा, रेडीयों के माध्यम से गांव व दूर दराज से पधार कर कई दिन रुककर दर्शन कर मेले का आनन्द उठा आत्म विभोर होते थे। श्री देवी मेला एवं ग्राम सुधार प्रदर्शनी के दो भाग हैं सन् 1925 में राजा शिवमंगल सिंह के सहयोग एवं श्री जैनुद्दीन अहमद कलेक्टर के प्रयास से प्रदर्शनी की शुरुआत हुई। सन् 1944 में मीना बाजार एवं नेहरू गेट का निर्माण प्राचीन शैली में किया। सन् 1951 में अशोक स्तम्भ का एवं सन् 1971 में फुब्बारा, जलकल व्यवस्था एवं शहीद स्तम्भ, सन् 1977 में मुख्य द्वार का निर्मााण कराया। सन् 1986 में जन समान्य के अवलोकनार्थ स्मारिका की शुरुआत की गयी। रंगमंच का निर्माण एवं नवीन कार्यक्रमों का समावेश सन् 1972 से 1989 के मध्य किया। जनसामान्य की सुरक्षार्थ एवं कार्यक्रमों के आयोजन हेतु कादम्बरी रंग मंच का विस्तार सन् 1992 में किया। कलाकारों के ठहरने एवं उनकी साजसज्जा हेतु सन् 1994 में ड्रेसिंग रूम एवं गेस्ट हाउस का निर्माण किया। दुकानदारों हेतु पड़े टिनशेड जर्रर होने के कारण नवीन दुकानों का सन् 2003 से प्रारम्भ किया वर्षा आदि से सुरक्षार्थ 2007-2008 में विशाल पण्डाल का निर्माण कराया। मीना बाजार एवं पंडाल में इन्टर लाॅकिंग, सर्च लाइट, देवी माँ के मन्दिर पर पाइप बैरिकेटिंग, निमंत्रण पत्रों को अभूतपूर्व रूप प्रदान, संयोजकों को प्रथमबार पदक (स्थान) व्यवस्था एवं कई नवीन व्यवस्थाऐं एवं कार्यक्रमों की शुरुआत, अखिल भारतीय परीक्षा के प्रतिभागियों को पुरस्कार व संरक्षक के सम्मान में प्रीतिभोज का आयोजन, व्यवस्था एवं कार्यक्रम गुणवत्ता समिति का गठन, वर्ष 2011 एवं 2012 हुआ। शनैः शनैः आवश्यकतानुसार नवीन व्यवस्थाऐं प्रदान की गयीं। जो आज तक निरन्तर गतिशील हैं प्रदर्शनी में मेले का समावेश शहरी व ग्रामीण अंचल की झलक को प्रस्तुत करता है। प्रदर्शनी का आयोजन ब्रिटिश काल से होता आ रहा है। कालान्तर में इस धार्मिक आयोजन को ग्रामीण अंचल की लोक कला एवं स्थानीय परिवेश को समाहित कर श्री देवी मेला एवं ग्राम सुधार प्रदर्शनी का नाम दिया गया। इस प्रकार यह आयोजन धार्मिक आस्था एवं मनोरंजन का अनूठा संगम है। समय-समय पर सदस्यों की सक्रिय सहभागिता एवं प्रशासनिक अधिकारियों के योगदान से सम्पूर्ण मेला परिसर में शहीद स्तम्भ, नेहरू गेट, मैन गेट, मीना बाजार, कादम्बरी रंगमंच पण्डाल एवं दुकानों की विस्तृत श्रृंखला स्थापित, लगभग एक माह तक चलने वाले इस मेले का आकर्षण केन्द्र है। इसमें प्रतिवर्ष भव्यता प्रदान करने के लिए आयोजकों द्वारा अथक प्रयास किये जाते हैं और जनमानस के लिए मनोरंजन परक एवं ज्ञान परक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। इस मेले की सर्वप्रमुख विशेषता है इसकी धर्म निरपेक्षता जो मैनपुरी जनपद की विशिष्ट पहचान है। राष्ट्रीय एकता की अनूठी मिशाल है, मैनपुरी की श्री देवी मेला एवं ग्राम सुधार प्रदर्शनी ।











